दिल गया तुम ने लिया हम क्या करें
दिल गया तुम ने लिया हम क्या करें
जाने वाली चीज़ का ग़म क्या करें

@dagh-dehlvi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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दिल गया तुम ने लिया हम क्या करें
जाने वाली चीज़ का ग़म क्या करें
तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था
न था रक़ीब तो आख़िर वो नाम किस का था
आप का ए'तिबार कौन करे
रोज़ का इंतिज़ार कौन करे
उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं
बाइस-ए-तर्क-ए-मुलाक़ात बताते भी नहीं
ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया
तमाम रात क़यामत का इंतिज़ार किया
ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा
ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा
अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता
कभी जान सदक़े होती कभी दिल निसार होता
बात मेरी कभी सुनी ही नहीं
जानते वो बुरी भली ही नहीं
ना-रवा कहिए ना-सज़ा कहिए
कहिए कहिए मुझे बुरा कहिए
अभी हमारी मोहब्बत किसी को क्या मालूम
किसी के दिल की हक़ीक़त किसी को क्या मालूम
तमाशा-ए-दैर-ओ-हरम देखते हैं
तुझे हर बहाने से हम देखते हैं
सितम ही करना जफ़ा ही करना निगाह-ए-उल्फ़त कभी न करना
तुम्हें क़सम है हमारे सर की हमारे हक़ में कमी न करना
फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं
जहाँ बजते हैं नक़्क़ारे वहीं मातम भी होते हैं
ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया
झूटी क़सम से आप का ईमान तो गया
अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता
कभी जान सदक़े होती कभी दिल निसार होता
तेरी सूरत को देखता हूँ मैं
उस की क़ुदरत को देखता हूँ मैं
इस नहीं का कोई इलाज नहीं
रोज़ कहते हैं आप आज नहीं
इन आंखों ने क्या क्या तमाशा न देखा
हक़ीक़त में जो देखना था न देखा
राह पर उन को लगा लाए तो हैं बातों में
और खुल जाएँगे दो चार मुलाक़ातों में
ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा
ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा