साफ़ कब इम्तिहान लेते हैं
साफ़ कब इम्तिहान लेते हैं
वो तो दम दे के जान लेते हैं

@dagh-dehlvi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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साफ़ कब इम्तिहान लेते हैं
वो तो दम दे के जान लेते हैं
उज़्र उन की ज़बान से निकला
तीर गोया कमान से निकला
ग़म से कहीं नजात मिले चैन पाएँ हम
दिल ख़ून में नहाए तो गंगा नहाएँ हम
साज़ ये कीना-साज़ क्या जानें
नाज़ वाले नियाज़ क्या जानें
दिल परेशान हुआ जाता है
और सामान हुआ जाता है
तुम आईना ही न हर बार देखते जाओ
मिरी तरफ़ भी तो सरकार देखते जाओ
इन आँखों ने क्या क्या तमाशा न देखा
हक़ीक़त में जो देखना था न देखा
उन के इक जाँ-निसार हम भी हैं
हैं जहाँ सौ हज़ार हम भी हैं
बाक़ी जहाँ में क़ैस न फ़रहाद रह गया
अफ़्साना आशिक़ों का फ़क़त याद रह गया
इधर देख लेना उधर देख लेना
कन-अँखियों से उस को मगर देख लेना
आरज़ू है वफ़ा करे कोई
जी न चाहे तो क्या करे कोई
ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया
झूटी क़सम से आप का ईमान तो गया
इस नहीं का कोई इलाज नहीं
रोज़ कहते हैं आप आज नहीं
फिरे राह से वो यहाँ आते आते
अजल मर रही तू कहाँ आते आते
लुत्फ़ वो इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है
रंज भी ऐसे उठाए हैं कि जी जानता है
मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है
मिरी जाँ चाहने वाला बड़ी मुश्किल से मिलता है
सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं
हम देखने वालों की नज़र देख रहे हैं
तमाशा-ए-दैर-ओ-हरम देखते हैं
तुझे हर बहाने से हम देखते हैं
भवें तनती हैं ख़ंजर हाथ में है तन के बैठे हैं
किसी से आज बिगड़ी है कि वो यूँ बन के बैठे हैं
अच्छी सूरत पे ग़ज़ब टूट के आना दिल का
याद आता है हमें हाए ज़माना दिल का