आप का ए'तिबार कौन करे

आप का ए'तिबार कौन करे

रोज़ का इंतिज़ार कौन करे


ज़िक्र-ए-मेहर-ओ-वफ़ा तो हम करते

पर तुम्हें शर्मसार कौन करे


हो जो उस चश्म-ए-मस्त से बे-ख़ुद

फिर उसे होशियार कौन करे


तुम तो हो जान इक ज़माने की

जान तुम पर निसार कौन करे


आफ़त-ए-रोज़गार जब तुम हो

शिकवा-ए-रोज़गार कौन करे


अपनी तस्बीह रहने दे ज़ाहिद

दाना दाना शुमार कौन करे


हिज्र में ज़हर खा के मर जाऊँ

मौत का इंतिज़ार कौन करे


आँख है तर्क-ए-ज़ुल्फ़ है सय्याद

देखें दिल का शिकार कौन करे


वा'दा करते नहीं ये कहते हैं

तुझ को उम्मीद-वार कौन करे


'दाग़' की शक्ल देख कर बोले

ऐसी सूरत को प्यार कौन करे