इन आंखों ने क्या क्या तमाशा न देखा

इन आंखों ने क्या क्या तमाशा न देखा

हक़ीक़त में जो देखना था न देखा

तुझे देख कर वो दुई उठ गई है

कि अपना भी सानी न देखा न देखा

उन आंखों के क़ुर्बान जाऊं जिन्होंने

हज़ारों हिजाबों में परवाना देखा

न हिम्मत न क़िस्मत न दिल है न आंखें

न ढूंढ़ान पाया न समझा न देखा

बहुत दर्द-मंदों को देखा है तूने

ये सीना ये दिल ये कलेजा न देखा

वो कब देख सकता है उस की तजल्ली

जिस इंसान ने अपना ही जल्वा न देखा

बहुत शोर सुनते थे इस अंजुमन का

यहां आ के जो कुछ सुना था न देखा

उसे देख कर और को फिर जो देखे

कोई देखने वाला ऐसा न देखा

गया कारवाँ छोड़ कर मुझ को तन्हा

ज़रा मेरे आने का रस्ता न देखा

तिरी याद है या है तेरा तसव्वुर

कभी 'दाग़' को हम ने तन्हा न देखा