बदन लिए तलाशता फिरू हूँ रात दिन उसे
बदन लिए तलाशता फिरू हूँ रात दिन उसे
सुना है जान भी मेरी कहीं इसी शहर में है

@bhaskar-shukla
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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बदन लिए तलाशता फिरू हूँ रात दिन उसे
सुना है जान भी मेरी कहीं इसी शहर में है
हमें गूंगा न समझा जाए कमतर बोलते हैं हम
जहाँ हमको सुना जाए वहीं पर बोलते हैं हम
आज है उनको आना, मज़ा आएगा
फिर जलेगा ज़माना, मज़ा आएगा
तुम्हें ये किसने कहा रब को नहीं मानता मैं
ये और बात कि मज़हब को नहीं मानता मैं
इस कदर ख़्वाब हैं वस्ल के आँख में
आबले पाँव के हमको दिखते नहीं
दुकानें नफ़रतों की ख़ूब आसानी से चलती हैं
अजब दुनिया है जाने इश्क़ क्यों करने नहीं देती
उनकी आँखों में ये आँखें थी और इन आँखों में वो
आईने के सामने रक्खा हुआ था आईना
गुज़िश्ता साल शायद ठीक से मारा नहीं था
ये रावण इस बरस फिर सामने तनकर खड़ा है
आँखें मैंने बन्द रखी हैं
यानी उनको देख रहा हूँ
जो ये मुमकिन नहीं कलयुग में राम हो जाऊँ
मेरी ख़्वाहिश है कि अब्दुल कलाम हो जाऊँ
इन आँखों का सूनापन ये कहता है
इन आँखों ने उन आँखों को देखा है
लंबा हिज्र गुज़ारा तब ये मिलने के पल चार मिले
जैसे एक बड़े हफ़्ते में छोटा सा इतवार मिले
तुझको देखा था जब आख़िरी बार तो
क्या पता था कि ये आख़िरी बार है
औरों का बताया हुआ रस्ता नहीं चुनते
जो इश्क़ चुना करते हैं, दुनिया नहीं चुनते
दिल देख के रो देता है मज़दूर के बच्चे
जब फावड़ा चुन लेते हैं बस्ता नहीं चुनते
बहुत आसान है कहना, बुरा क्या है भला क्या है
करोगे इश्क तब मालूम होगा, मस'अला क्या है
तुम्हें मैं क्या बताऊँ इस शहर का हाल कैसा है
यहाँ बारिश तो होती है मगर सावन नहीं आता
अगर है इश्क़ सच्चा तो निगाहों से बयाँ होगा
ज़बाँ से बोलना भी क्या कोई इज़हार होता है
रास्ता जब इश्क का मौज़ूद है
फिर किसी की क्यूँ इबादत कीजिये?
छोड़ो दुनिया की परवाहें, करो मोहब्बत
मुश्किल हों कितनी भी राहें, करो मोहब्बत