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बदन लिए तलाशता फिरू हूँ रात दिन उसे

बदन लिए तलाशता फिरू हूँ रात दिन उसे

सुना है जान भी मेरी कहीं इसी शहर में है

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बदन लिए तलाशता फिरू हूँ रात दिन उसे — Bhaskar Shukla • ShayariPage