किताबें बंद करके जब मैं बिस्तर पर पहुँचता हूँ
किताबें बंद करके जब मैं बिस्तर पर पहुँचता हूँ
तुम्हारी याद भी आकर बगल में लेट जाती है

@bhaskar-shukla
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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किताबें बंद करके जब मैं बिस्तर पर पहुँचता हूँ
तुम्हारी याद भी आकर बगल में लेट जाती है
हमारी मुस्कुराहट लाज़िमी है
कि हम उनकी गली से आ रहे हैं
मुश्किल है समझाना इसको
दिल के पास दिमाग़ नहीं है
रात अँधेरी, ख़ाली रस्ता, और रफ़ी के गाने हैं
गाड़ी में सब हम जैसे हैं यानी सब दीवाने हैं
ना तो कुछ सुनते हैं ना ही बोल कुछ पाते हैं हम
सामने उनके सरापा आँख हो जाते हैं हम
ख़्वाहिश सब रखते हैं तुझको पाने की
और फिर अपनी अपनी क़िस्मत होती है
कुछ एक की हम जैसी क़िस्मत होती है
बाकी सब की अच्छी क़िस्मत होती है
चलो माना कि रोना मसअले का हल नहीं लेकिन
करे भी क्या कोई जब ख़त्म हर उम्मीद हो जाये
तुम्हारी याद का रंग डाल कर के
कहा तन्हाई ने होली मुबारक !
ख़्वाहिश है इन गुलों को दवामी बहार दूँ
जितने किये हैं इश्क़ सुख़न में उतार दूँ
लाज़िम है अब कि आप ज़ियादा उदास हों
इस शहर में बचे हैं बहुत कम उदास लोग
ठीक थी उनसे मुलाक़ात मगर ठीक ही थी
फ़िल्म इतनी नहीं अच्छी कि दोबारा देखूँ
वरना तो ये दीवार-ओ-दर लगता है
तुम होती हो घर में तो घर लगता है
वैसे तो उसका नाम नहीं हाफ़िज़े में अब
मुमकिन है रूबरू जो कभी हो, पुकार दूँ
तेरा लिक्खा जो पढ़ूँ तो तेरी आवाज़ सुनूँ
तेरी आवाज़ सुनूँ तो तेरा चेहरा देखूँ
जो कह नहीं सका उसे क़रीब था वो जब मेरे
वो बात शेर में बदल गई तो दूर तक गई
मिले थे फरवरी में आपसे पहली दफ़ा हम
तभी से दोस्ती सी हो गयी है फरवरी से
मैं कैसे मान लूँ कि इश्क़ बस इक बार होता है
तुझे जितनी दफ़ा देखूँ मुझे हर बार होता है
जिसे तुम काट आये उस शजर को ढूँढता होगा
परिंदा लौटकर के अपने घर को ढूँढता होगा
ज़मीन-ओ-आसमाँ को जगमगा दो रौशनी से
दिसम्बर आज मिलने जा रहा है जनवरी से