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मैं कैसे मान लूँ कि इश्क़ बस इक बार होता है

मैं कैसे मान लूँ कि इश्क़ बस इक बार होता है

तुझे जितनी दफ़ा देखूँ मुझे हर बार होता है

तुझे पाने की हसरत और डर ना-कामियाबी का

इन्हीं दो तीन बातों से ये दिल दो चार होता है

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मैं कैसे मान लूँ कि इश्क़ बस इक बार होता है — Bhaskar Shukla • ShayariPage