अब तेरे ज़िक्र पे हम बात बदल देते हैं
अब तेरे ज़िक्र पे हम बात बदल देते हैं
कितनी रग़बत थी तेरे नाम से पहले पहले

@ahmad-faraz
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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अब तेरे ज़िक्र पे हम बात बदल देते हैं
कितनी रग़बत थी तेरे नाम से पहले पहले
सो देख कर तेरे रुख़्सार-ओ-लब यक़ीं आया
कि फूल खिलते हैं गुलज़ार के अलावा भी
न मंज़िलों को न हम रहगुज़र को देखते हैं
अजब सफ़र है कि बस हम-सफ़र को देखते हैं
सिलवटें हैं मेरे चेहरे पे तो हैरत क्यूँ है
ज़िन्दगी ने मुझे कुछ तुमसे ज़ियादा पहना
तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौसला है मुझे
उम्र भर कौन निभाता है तअल्लुक़ इतना
ऐ मेरी जान के दुश्मन तुझे अल्लाह रक्खे
आशिक़ी में 'मीर' जैसे ख़्वाब मत देखा करो
बावले हो जाओगे महताब मत देखा करो
चला था ज़िक्र ज़माने की बेवफ़ाई का
सो आ गया है तुम्हारा ख़याल वैसे ही
कुछ इस तरह से गुज़ारी है ज़िन्दगी जैसे
तमाम उम्र किसी दूसरे के घर में रहा
मैं क्या करूँ मेरे क़ातिल न चाहने पर भी
तेरे लिए मेरे दिल से दुआ निकलती है
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
ये आख़िरी शमएँ भी बुझाने के लिए आ
दिल भी पागल है कि उस शख़्स से वाबस्ता है
जो किसी और का होने दे न अपना रक्खे
हमको अच्छा नहीं लगता कोई हमनाम तेरा
कोई तुझ सा हो तो फिर नाम भी तुझ सा रक्खे
इस ज़िन्दगी में इतनी फ़राग़त किसे नसीब
इतना न याद आ कि तुझे भूल जाएँ हम
आज इक और बरस बीत गया उस के बग़ैर
जिस के होते हुए होते थे ज़माने मेरे
अगर तुम्हारी अना ही का है सवाल तो फिर
चलो मैं हाथ बढ़ाता हूँ दोस्ती के लिए
इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ
क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ
किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल
कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा
आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा