न दिल से आह न लब से सदा निकलती है
न दिल से आह न लब से सदा निकलती है
मगर ये बात बड़ी दूर जा निकलती है

@ahmad-faraz
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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न दिल से आह न लब से सदा निकलती है
मगर ये बात बड़ी दूर जा निकलती है
हर तमाशाई फ़क़त साहिल से मंज़र देखता
कौन दरिया को उलटता कौन गौहर देखता
तेरे क़रीब आ के बड़ी उलझनों में हूँ
मैं दुश्मनों में हूँ कि तिरे दोस्तों में हूँ
किस तरफ़ को चलती है अब हवा नहीं मालूम
हाथ उठा लिए सबने और दुआ नहीं मालूम
बरसों के बाद देखा इक शख़्स दिलरुबा सा
अब ज़ेहन में नहीं है पर नाम था भला सा
न हरीफ़-ए-जाँ न शरीक-ए-ग़म शब-ए-इंतिज़ार कोई तो हो
किसे बज़्म-ए-शौक़ में लाएँ हम दिल-ए-बे-क़रार कोई तो हो
हुई है शाम तो आँखों में बस गया फिर तू
कहाँ गया है मिरे शहर के मुसाफ़िर तू
तुझ से मिल कर तो ये लगता है कि ऐ अजनबी दोस्त
तू मिरी पहली मोहब्बत थी मिरी आख़िरी दोस्त
साक़िया एक नज़र जाम से पहले पहले
हम को जाना है कहीं शाम से पहले पहले
जुज़ तिरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे
तू कहाँ है मगर ऐ दोस्त पुराने मेरे
अजब जुनून-ए-मसाफ़त में घर से निकला था
ख़बर नहीं है कि सूरज किधर से निकला था
ख़ामोश हो क्यूँ दाद-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते
बिस्मिल हो तो क़ातिल को दुआ क्यूँ नहीं देते
इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की
आज पहली बार उस से मैं ने बेवफ़ाई की
तुझे है मश्क़-ए-सितम का मलाल वैसे ही
हमारी जान थी जाँ पर वबाल वैसे ही
यूँही मर मर के जिएँ वक़्त गुज़ारे जाएँ
ज़िंदगी हम तिरे हाथों से न मारे जाएँ
क्या ऐसे कम-सुख़न से कोई गुफ़्तुगू करे
जो मुस्तक़िल सुकूत से दिल को लहू करे
अब शौक़ से कि जाँ से गुज़र जाना चाहिए
बोल ऐ हवा-ए-शहर किधर जाना चाहिए
जब भी दिल खोल के रोए होंगे
लोग आराम से सोए होंगे
फिर उसी रहगुज़ार पर शायद
हम कभी मिल सकें मगर शायद
ऐसे चुप हैं कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे
तेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे