Shayari Page
GHAZAL

बरसों के बाद देखा इक शख़्स दिलरुबा सा

बरसों के बाद देखा इक शख़्स दिलरुबा सा

अब ज़ेहन में नहीं है पर नाम था भला सा

अबरू खिंचे खिंचे से आँखें झुकी झुकी सी

बातें रुकी रुकी सी लहजा थका थका सा

अल्फ़ाज़ थे कि जुगनू आवाज़ के सफ़र में

बन जाए जंगलों में जिस तरह रास्ता सा

ख़्वाबों में ख़्वाब उसके यादों में याद उसकी

नींदों में खुल गया हो जैसे कि रतजगा सा

पहले भी लोग आए कितने ही ज़िंदगी में

वह हर तरह से लेकिन औरों से था जुदा सा

कुछ ये कि मुद्दतों से हम भी नहीं थे रोए

कुछ ज़हर में खुला था अहबाब का दिलासा

फिर यूँ हुआ कि सावन आँखों में आ बसे थे

फिर यूँ हुआ कि जैसे दिल भी था आबला सा

अब सच कहें तो यारों हमको ख़बर नहीं थी

बन जाएगा क़यामत इक वाक़िआ ज़रा सा

तेवर थे बे-रुख़ी के अंदाज़ दोस्ती के

वह अजनबी था लेकिन लगता था आशना सा

हम दश्त थे कि दरिया हम ज़हर थे कि अमृत

ना-हक़ था ज़ोम हमको जब वो नहीं था प्यासा

हमने भी उसको देखा कल शाम इत्तेफ़ाक़न

अपना भी हाल है अब लोगों फ़राज़ का सा

Comments

Loading comments…
बरसों के बाद देखा इक शख़्स दिलरुबा सा — Ahmad Faraz • ShayariPage