GHAZAL•
किस तरफ़ को चलती है अब हवा नहीं मालूम
By Ahmad Faraz
किस तरफ़ को चलती है अब हवा नहीं मालूम
हाथ उठा लिए सबने और दुआ नहीं मालूम
मौसमों के चेहरों से ज़र्दियाँ नहीं जाती
फूल क्यूँ नहीं लगते ख़ुश-नुमा नहीं मालूम
रहबरों के तेवर भी रहज़नों से लगते हैं
कब कहाँ पे लुट जाए क़ाफ़िला नहीं मालूम
सर्व तो गई रुत में क़ामतें गँवा बैठे
क़ुमरियाँ हुईं कैसे बे-सदा नहीं मालूम
आज सबको दावा है अपनी अपनी चाहत का
कौन किस से होता है कल जुदा नहीं मालूम
मंज़रों की तब्दीली बस नज़र में रहती है
हम भी होते जाते हैं क्या से क्या नहीं मालूम
हम 'फ़राज़' शेरों से दिल के ज़ख़्म भरते हैं
क्या करें मसीहा को जब दवा नहीं मालूम