जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा
जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा
किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता

@waseem-barelvi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
Followers
0
Content
124
Likes
0
जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा
किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता
मिरे होंटों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो
कि इसके बा'द भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है
चराग़ घर का हो महफ़िल का हो कि मंदिर का
हवा के पास कोई मसलहत नहीं होती
आते आते मिरा नाम सा रह गया
उस के होंटों पे कुछ काँपता रह गया
कहाँ की दोस्ती किन दोस्तों की बात करते हो
मियाँ दुश्मन नहीं मिलता कोई अब तो ठिकाने का
मैंने मुद्दत से कोई ख़्वाब नहीं देखा है
हाथ रख दे मेरी आँखों पे कि नींद आ जाए
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे
हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें
ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें
इस दौर-ए-मुंसिफ़ी में ज़रूरी नहीं 'वसीम'
जिस शख़्स की ख़ता हो उसी को सज़ा मिले
ग़म बयाँ करने का कोई और ढंग ईजाद कर
तेरी आँखों का ये पानी तो पुराना हो गया
तुम अपने बारे में कुछ देर सोचना छोड़ो
तो मैं बताऊँ कि तुम किस क़दर अकेले हो
कोई इशारा दिलासा न कोई वादा मगर
जब आई शाम तिरा इंतिज़ार करने लगे
वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता
मगर इन एहतियातों से तअल्लुक़ मर नहीं जाता
तुझको सोचा तो पता हो गया रुसवाई को
मैंने महफूज़ समझ रखा था तन्हाई को
दूर से ही बस दरिया दरिया लगता है
डूब के देखो कितना प्यासा लगता है
झूट वाले कहीं से कहीं बढ़ गए
और मैं था कि सच बोलता रह गया
वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीक़े से
मैं एतिबार न करता तो और क्या करता
न पाने से किसी के है न कुछ खोने से मतलब है
ये दुनिया है इसे तो कुछ न कुछ होने से मतलब है
आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है
भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है
दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता
तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता