"वो सुब्ह कभी तो आएगी"
"वो सुब्ह कभी तो आएगी"
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@sahir-ludhianvi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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"वो सुब्ह कभी तो आएगी"
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साथियो! मैं ने बरसों तुम्हारे लिए
चाँद तारों बहारों के सपने बुने
रात सुनसान थी बोझल थीं फ़ज़ा की साँसें
रूह पर छाए थे बे-नाम ग़मों के साए
ख़ून अपना हो या पराया हो
नस्ल-ए-आदम का ख़ून है आख़िर
मैंने चांद और सितारों की तमन्ना की थी
मुझ को रातों की सियाही के सिवा कुछ न मिला
आओ कि आज ग़ौर करें इस सवाल पर
देखे थे हम ने जो वो हसीं ख़्वाब क्या हुए
ये कूचे, ये नीलामघर दिलकशी के
ये लुटते हुए कारवां ज़िन्दगी के
हिरास
तेरे होंटों पे तबस्सुम की वो हल्की सी लकीर
लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं
लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं
मेरे ख़्वाबों के झरोकों को सजाने वाली
तेरे ख़्वाबों में कहीं मेरा गुज़र है कि नहीं
ताज तेरे लिए इक मज़हर-ए-उल्फ़त ही सही
तुझ को इस वादी-ए-रंगीं से अक़ीदत ही सही
मैं पल-दो-पल का शायर हूँ, पल-दो-पल मेरी कहानी है
पल-दो-पल मेरी हस्ती है, पल-दो-पल मेरी जवानी है