हुस्न जब मेहरबाँ हो तो क्या कीजिए
हुस्न जब मेहरबाँ हो तो क्या कीजिए
इश्क़ के मग़्फ़िरत की दुआ कीजिए

@khumar-barabankvi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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हुस्न जब मेहरबाँ हो तो क्या कीजिए
इश्क़ के मग़्फ़िरत की दुआ कीजिए
तिरे दर से उठ कर जिधर जाऊँ मैं
चलूँ दो क़दम और ठहर जाऊँ मैं
हम उन्हें वो हमें भुला बैठे
दो गुनहगार ज़हर खा बैठे
पी पी के जगमगाए ज़माने गुज़र गए
रातों को दिन बनाए ज़माने गुज़र गए
वही फिर मुझे याद आने लगे हैं
जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं
वो सिवा याद आए भुलाने के बाद
ज़िंदगी बढ़ गई ज़हर खाने के बाद
क्या हुआ हुस्न है हम-सफ़र या नहीं
इश्क़ मंज़िल ही मंज़िल है रस्ता नहीं
या रब मुआ'फ़ कर के न दे कर्ब-ए-इंफ़िआल
मैं ने ख़ताएँ की हैं सज़ा चाहिए मुझे
तू चाहिए न तेरी वफ़ा चाहिए मुझे
कुछ भी न तेरे ग़म के सिवा चाहिए मुझे
इक पल में इक सदी का मज़ा हम से पूछिए
दो दिन की ज़िंदगी का मज़ा हम से पूछिए
अकेले हैं वो और झुंझला रहे हैं
मेरी याद से जंग फ़रमा रहे हैं
वो जो आए हयात याद आई
भूली बिसरी सी बात याद आई