इलाही मिरे दोस्त हों ख़ैरियत से
इलाही मिरे दोस्त हों ख़ैरियत से
ये क्यूँ घर में पत्थर नहीं आ रहे हैं

@khumar-barabankvi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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इलाही मिरे दोस्त हों ख़ैरियत से
ये क्यूँ घर में पत्थर नहीं आ रहे हैं
हद से बढ़े जो इल्म तो है जहल दोस्तो
सब कुछ जो जानते हैं वो कुछ जानते नहीं
कहूँ किस तरह मैं कि वो बेवफ़ा है
मुझे उस की मजबूरियों का पता है
ख़ुदा बचाए तिरी मस्त मस्त आँखों से
फ़रिश्ता हो तो बहक जाए आदमी क्या है
अब इन हुदूद में लाया है इंतिज़ार मुझे
वो आ भी जाएँ तो आए न ऐतबार मुझे
चला तो हूँ मैं उन के दर से बिगड़ कर
हँसी आ रही है कि आना पड़ेगा
दुश्मनों से प्यार होता जाएगा
दोस्तों को आज़माते जाइए
हटाए थे जो राह से दोस्तों की
वो पत्थर मेरे घर में आने लगे हैं
दूसरों पर अगर तब्सिरा कीजिए
सामने आइना रख लिया कीजिए
इक पल में इक सदी का मज़ा हम से पूछिए
दो दिन की ज़िंदगी का मज़ा हम से पूछिए
भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम
क़िस्तों में ख़ुद-कुशी का मज़ा हम से पूछिए
ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत नहीं रही
जज़्बात में वो पहली सी शिद्दत नहीं रही
फूल कर ले निबाह काँटों से
आदमी ही न आदमी से मिले
हुस्न जब मेहरबाँ हो तो क्या कीजिए
इश्क़ के मग़्फ़िरत की दुआ कीजिए
रात बाक़ी थी जब वो बिछड़े थे
कट गई उम्र रात बाक़ी है
वही फिर मुझे याद आने लगे हैं
जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं
तेरे दर से जब उठ के जाना पड़ेगा
ख़ुद अपना जनाज़ा उठाना पड़ेगा
ये कहना था उन से मोहब्बत है मुझ को
ये कहने में मुझ को ज़माने लगे हैं
न हारा है इश्क़ और न दुनिया थकी है
दिया जल रहा है हवा चल रही है