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GHAZAL

हम उन्हें वो हमें भुला बैठे

हम उन्हें वो हमें भुला बैठे

दो गुनहगार ज़हर खा बैठे

हाल-ए-ग़म कह के ग़म बढ़ा बैठे

तीर मारे थे तीर खा बैठे

आँधियो जाओ अब करो आराम

हम ख़ुद अपना दिया बुझा बैठे

जी तो हल्का हुआ मगर यारो

रो के हम लुत्फ़-ए-ग़म गँवा बैठे

बे-सहारों का हौसला ही क्या

घर में घबराए दर पे आ बैठे

जब से बिछड़े वो मुस्कुराए न हम

सब ने छेड़ा तो लब हिला बैठे

हम रहे मुब्तला-ए-दैर-ओ-हरम

वो दबे पाँव दिल में आ बैठे

उठ के इक बेवफ़ा ने दे दी जान

रह गए सारे बा-वफ़ा बैठे

हश्र का दिन अभी है दूर 'ख़ुमार'

आप क्यूँ ज़ाहिदों में जा बैठे

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