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GHAZAL

तिरे दर से उठ कर जिधर जाऊँ मैं

तिरे दर से उठ कर जिधर जाऊँ मैं

चलूँ दो क़दम और ठहर जाऊँ मैं

सँभाले तो हूँ ख़ुद को तुझ बिन मगर

जो छू ले कोई तो बिखर जाऊँ मैं

अगर तू ख़फ़ा हो तो पर्वा नहीं

तिरा ग़म ख़फ़ा हो तो मर जाऊँ मैं

तबस्सुम ने इतना डसा है मुझे

कली मुस्कुराए तो डर जाऊँ मैं

मिरा घर फ़सादात में जल चुका

वतन जाऊँ तो किस के घर जाऊँ मैं

'ख़ुमार' उन से तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ बजा

मगर जीते-जी कैसे मर जाऊँ मैं

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