ये साँप आज जो फन उठाए
ये साँप आज जो फन उठाए
मिरे रास्ते में खड़ा है

@kaifi-azmi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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ये साँप आज जो फन उठाए
मिरे रास्ते में खड़ा है
मस्त घटा मंडलाई हुई है
बाग़ पे मस्ती छाई हुई है
नुक़ूश-ए-हसरत मिटा के उठना, ख़ुशी का परचम उड़ा के उठना
मिला के सर बैठना मुबारक तराना-ए-फ़त्ह गा के उठना
ज़बाँ को तर्जुमान-ए-ग़म बनाऊँ किस तरह 'कैफ़ी'
मैं बर्ग-ए-गुल से अंगारे उठाऊँ किस तरह 'कैफ़ी'
अज़ीज़ माँ मिरी हँसमुख मिरी बहादुर माँ
तमाम जौहर-ए-फ़ितरत जगा दिए तू ने
लो पौ फटी वो छुप गई तारों की अंजुमन
लो जाम-ए-महर से वो छलकने लगी किरन
वो सर्द रात जबकि सफ़र कर रहा था मैं
रंगीनियों से जर्फ़-ए-नज़र भर रहा था मैं
ये सेहहत-बख़्श तड़का ये सहर की जल्वा-सामानी
उफ़ुक़ सारा बना जाता है दामान-ए-चमन जैसे
तबीअत जब्रिया तस्कीन से घबराई जाती है
हँसूँ कैसे हँसी कम-बख़्त तू मुरझाई जाती है
मेरे काँधे पे बैठा कोई
पढ़ता रहता है इंजील ओ क़ुरआन ओ वेद
राम बन-बास से जब लौट के घर में आए
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आए
तुम परेशान न हो, बाब-ए-करम वा न करो
और कुछ देर पुकारूँगा चला जाऊँगा
मुद्दतों मैं इक अंधे कुएँ में असीर
सर पटकता रहा गिड़गिड़ाता रहा
मैं ये सोच कर उस के दर से उठा था
कि वो रोक लेगी मना लेगी मुझ को
रूह बेचैन है इक दिल की अज़िय्यत क्या है
दिल ही शोला है तो ये सोज़-ए-मोहब्बत क्या है
एक दो ही नहीं छब्बीस दिए
एक इक कर के जलाए मैं ने
अब और क्या तिरा बीमार बाप देगा तुझे
बस इक दुआ कि ख़ुदा तुझ को कामयाब करे
इक यही सोज़-ए-निहाँ कुल मिरा सरमाया है
दोस्तो मैं किसे ये सोज़-ए-निहाँ नज़्र करूँ
अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो
मुझ से बिखरे हुए गेसू नहीं देखे जाते
प्यार का जश्न नई तरह मनाना होगा
ग़म किसी दिल में सही ग़म को मिटाना होगा