जो उन पे गुज़रती है किस ने उसे जाना है
जो उन पे गुज़रती है किस ने उसे जाना है
अपनी ही मुसीबत है अपना ही फ़साना है

@jigar-moradabadi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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जो उन पे गुज़रती है किस ने उसे जाना है
अपनी ही मुसीबत है अपना ही फ़साना है
यही है ज़िंदगी तो ज़िंदगी से ख़ुद-कुशी अच्छी
कि इंसाँ आलम-ए-इंसानियत पर बार हो जाए
जो तूफ़ानों में पलते जा रहे हैं
वही दुनिया बदलते जा रहे हैं
ज़िन्दगी इक हादसा है और कैसा हादसा
मौत से भी ख़त्म जिसका सिलसिला होता नहीं
बहुत हसीन सही सोहबतें गुलों की मगर
वो ज़िंदगी है जो काँटों के दरमियाँ गुज़रे
हाय रे मजबूरियाँ, महरूमियाँ, नाकामियाँ
इश्क़ आख़िर इश्क़ है, तुम क्या करो, हम क्या करें
आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं
जैसे हर शय में किसी शय की कमी पाता हूँ मैं
ऐ इश्क़-ए-जुनूँ-पेशा हाँ इश्क़-ए-जुनूँ-पेशा
आज एक सितमगर को हँस हँस के रुलाना है
जब मिली आँख होश खो बैठे
कितने हाज़िर जवाब हैं हम लोग
दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं
कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
वही है ज़िंदगी लेकिन 'जिगर' ये हाल है अपना
कि जैसे ज़िंदगी से ज़िंदगी कम होती जाती है
दुनिया को मारा जिगर के शेरों ने
जिगर को शराब ने मारा
इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है
यूँ दिल को तड़पने का कुछ तो है सबब आख़िर
या दर्द ने करवट ली या तुम ने इधर देखा
हुस्न को भी कहाँ नसीब 'जिगर'
वो जो इक शय मिरी निगाह में है
हम ने सीने से लगाया दिल न अपना बन सका
मुस्कुरा कर तुम ने देखा दिल तुम्हारा हो गया
या वो थे ख़फ़ा हम से या हम हैं ख़फ़ा उन से
कल उन का ज़माना था आज अपना ज़माना है
मोहब्बत में हम तो जिए हैं जिएँगे
वो होंगे कोई और मर जाने वाले
गुदाज़-ए-इश्क़ नहीं कम जो मैं जवाँ न रहा
वही है आग मगर आग में धुआँ न रहा
गरचे अहल-ए-शराब हैं हम लोग
ये न समझो ख़राब हैं हम लोग