वो कब के आए भी और गए भी नज़र में अब तक समा रहे हैं
वो कब के आए भी और गए भी नज़र में अब तक समा रहे हैं
ये चल रहे हैं, वो फिर रहे हैं, ये आ रहे हैं वो जा रहे हैं

@jigar-moradabadi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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वो कब के आए भी और गए भी नज़र में अब तक समा रहे हैं
ये चल रहे हैं, वो फिर रहे हैं, ये आ रहे हैं वो जा रहे हैं
वही है शोर-ए-हाए-ओ-हू, वही हुजूम-ए-मर्द-ओ-ज़न
मगर वो हुस्न-ए-ज़िंदगी, मगर वो जन्नत-ए-वतन
अपना ही सा ऐ नर्गिस-ए-मस्ताना बना दे
मैं जब तुझे जानूँ मुझे दीवाना बना दे
बंगाल की मैं शाम-ओ-सहर देख रहा हूँ
हर चंद कि हूँ दूर मगर देख रहा हूँ
साक़ी की हर निगाह पे बल खा के पी गया
लहरों से खेलता हुआ लहरा के पी गया
पहले तो हुस्न-ए-अमल हुस्न-ए-यक़ीं पैदा कर
फिर इसी ख़ाक से फ़िरदौस-ए-बरीं पैदा कर
आई जब उन की याद तो आती चली गई
हर नक़्श-ए-मा-सिवा को मिटाती चली गई
पहले तो हुस्न-ए-अमल हुस्न-ए-यक़ीं पैदा कर
फिर इसी ख़ाक से फ़िरदौस-ए-बरीं पैदा कर