कमरा खोला तो आँख भर आई
कमरा खोला तो आँख भर आई
ये जो ख़ुशबू है जिस्म थी पहले

@fahmi-badayuni
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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कमरा खोला तो आँख भर आई
ये जो ख़ुशबू है जिस्म थी पहले
जो मोहब्बत लुटाया करते थे
वो तराज़ू ख़रीद लाए हैं
तसल्ली दे रहे हैं चारागर को
समझ लो हाल है कैसा हमारा
अदाकारी बहुत दुख दे रही है
मैं सच-मुच मुस्कुराना चाहता हूँ
नहीं हो तुम तो ऐसा लग रहा है
कि जैसे शहर में कर्फ़्यू लगा है
उसने ख़त का जवाब भेजा है
चार लेकिन हैं एक हाँ के साथ
ख़ुशी से काँप रही थीं ये उँगलियाँ इतनी
डिलीट हो गया इक शख़्स सेव करने में
निगाहें फेर ली घबरा के मैंने
वो तुम से ख़ूबसूरत लग रही थी
दिल से साबित करो कि ज़िंदा हो
साँस लेना कोई सुबूत नहीं
मोहब्बत अपनी क़िस्मत में नहीं है
इबादत से गुज़ारा कर रहे है
हाल मीठे फलों का मत पूछो
रात दिन चाकूओं में रहते हैं
यूँ तो रुस्वाई ज़हर है लेकिन
इश्क़ में जान इसी से पड़ती है
बस ये दिक़्क़त है भुलाने में उसे
उसके बदले में किस को याद करें
कितना महफ़ूज़ हूँ मैं कोने में
कोई अड़चन नहीं है रोने में
उसकी जुल्फ़ें उदास हो जाए
इस-क़दर रोशनी भी ठीक नहीं
कुछ न कुछ बोलते रहो हमसे
चुप रहोगे तो लोग सुन लेंगे
पूछ लेते वो बस मिज़ाज मिरा
कितना आसान था इलाज मिरा
सोचता हूँ कि उसकी आख़िरी कॉल
आख़िरी ही हुई तो क्या होगा
तो क्या उसको मैं होंठों से बजाऊँ
तिरे दर पे जो घंटी लग गई है
तेरी ख़ुशबू को क़ैद में रखना
इत्रदानों के बस की बात नहीं