मैं तो ऐ इश्क़ तेरी कूज़ा-गरी जानता हूँ
मैं तो ऐ इश्क़ तेरी कूज़ा-गरी जानता हूँ
तूने हम दो को मिलाया तो बना एक ही शख़्स

@abbas-tabish
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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मैं तो ऐ इश्क़ तेरी कूज़ा-गरी जानता हूँ
तूने हम दो को मिलाया तो बना एक ही शख़्स
क्या तमाशा है कि सब मुझको बुरा कहते हैं
और सब चाहते हैं मेरी तरह का होना
इसीलिए तो किसी को बताने वाला नहीं
कि तेरा मेरा त'अल्लुक़ ज़माने वाला नहीं
बस एक मोड़ मिरी ज़िंदगी में आया था
फिर इस के बाद उलझती गई कहानी मेरी
एक मुद्दत से मिरी माँ नहीं सोई 'ताबिश'
मैं ने इक बार कहा था मुझे डर लगता है
ये जो है फूल हथेली पे इसे फूल न जान
मेरा दिल जिस्म से बाहर भी तो हो सकता है
मैं अपने बाद बहुत याद आया करता हूँ
तुम अपने पास न रखना कोई निशानी मेरी
सुनहरी लड़कियों इनको मिलो मिलो न मिलो
ग़रीब होते हैं बस ख़्वाब देखने के लिए
देख कैसे धुल गए है गिर्या-ओ-ज़ारी के बाद
आसमाँ बारिश के बाद और मैं अज़ादारी के बाद
यार इक बार परिंदों को हुकूमत दे दो
ये किसी शहर को मक़्तल नहीं होने देंगे
मैं तेरे बाद कोई तेरे जैसा ढूँढता हूँ
जो बेवफ़ाई करे और बेवफ़ा न लगे
चलता रहने दो मियाँ सिलसिला दिलदारी का
आशिक़ी दीन नहीं है कि मुकम्मल हो जाए
मुद्दत के बाद ख़्वाब में आया था मेरा बाप
और उसने मुझसे इतना कहा ख़ुश रहा करो
आदतन उसके लिए फूल ख़रीदे वरना
नहीं मालूम वो इस बार यहाँ है कि नहीं
हम हैं सूखे हुए तालाब पे बैठे हुए हंस
जो तअ'ल्लुक़ को निभाते हुए मर जाते हैं
मैं ने पूछा था कि इज़हार नहीं हो सकता
दिल पुकारा कि ख़बर-दार नहीं हो सकता
ये मोहब्बत की कहानी नहीं मरती लेकिन
लोग किरदार निभाते हुए मर जाते हैं
शायद किसी बला का था साया दरख़्त पर
चिड़ियों ने रात शोर मचाया दरख़्त पर
पाँव पड़ता हुआ रस्ता नहीं देखा जाता
जाने वाले तिरा जाना नहीं देखा जाता
मैं अपने आप में गहरा उतर गया शायद
मिरे सफ़र से अलग हो गई रवानी मिरी