हम तो उस आंख के हैं देखने वाले, देखो
हम तो उस आंख के हैं देखने वाले, देखो
जिसमें शोख़ी है बहुत और हया थोड़ी सी

@dagh-dehlvi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
Followers
0
Content
95
Likes
0
हम तो उस आंख के हैं देखने वाले, देखो
जिसमें शोख़ी है बहुत और हया थोड़ी सी
मेरे फसाने को सुन सुन के नींद उड़ती है
दुआएँ मुझको तेरे पासबान देते हैं
बहुत चल बसे यार ऐ ज़िंदगी
कोई दिन की मेहमान तू रह गई
चुरायगा उसी से आंख कातिल
ज़रा सी जान जिस बिस्मिल में होगी
तेरी रंजिश खुली तर्ज-ए-बयाँ से
न थी दिल में तो क्यूँ निकली ज़बाँ से
मुझे याद करने से ये मुद्दआ था
निकल जाए दम हिचकियाँ आते आते
हज़ारों काम मोहब्बत में हैं मज़े के 'दाग़'
जो लोग कुछ नहीं करते कमाल करते हैं
ख़ुदा की क़सम उस ने खाई जो आज
क़सम है ख़ुदा की मज़ा आ गया
अब तो बीमार-ए-मोहब्बत तेरे
क़ाबिल-ए-ग़ौर हुए जाते हैं
ये मज़ा था दिल-लगी का कि बराबर आग लगती
न तुझे क़रार होता न मुझे क़रार होता
क्या पूछते हो कौन है ये किस की है शोहरत
क्या तुम ने कभी 'दाग़' का दीवां नहीं देखा
वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे
तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था
लिपट जाते हैं वो बिजली के डर से
इलाही ये घटा दो दिन तो बरसे
तुम्हारा दिल मिरे दिल के बराबर हो नहीं सकता
वो शीशा हो नहीं सकता ये पत्थर हो नहीं सकता
वो क़त्ल कर के मुझे हर किसी से पूछते हैं
ये काम किसने किया है, ये काम किस का था?