लगाना बाग़ तो उस में मोहब्बत भी ज़रा रखना
लगाना बाग़ तो उस में मोहब्बत भी ज़रा रखना
परिंदों के बिना कोई शजर पूरा नहीं होता

@shakeel-azmi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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लगाना बाग़ तो उस में मोहब्बत भी ज़रा रखना
परिंदों के बिना कोई शजर पूरा नहीं होता
कच्ची उम्रों में हमें काम पर लगा दिया गया
हम वो बच्चे जो जवानी से अलग कर दिए गए
मेरे होंटों पे ख़ामुशी है बहुत
इन गुलाबों पे तितलियाँ रख दे
तुम आसमान पे जाना तो चाँद से कहना
जहाँ पे हम हैं वहाँ चांदनी बहुत कम है
दर्द में शिद्दत-ए-एहसास नहीं थी पहले
ज़िंदगी राम का बन-बास नहीं थी पहले
ख़ुद को इतना भी मत बचाया कर
बारिशें हों तो भीग जाया कर
अपनी मंज़िल पे पहुँचना भी खड़े रहना भी
कितना मुश्किल है बड़े हो के बड़े रहना भी
आदमी होता है माहौल से अच्छा या बुरा
जानवर घर में रखे जाएँ तो इन्सान से हैं
ये जो मैं होश में रहता नहीं तुमसे मिल कर
ये मिरा इश्क़ है तुम इसको नशा मत समझो
वो बुझ गया तो चला उसकी अहमियत का पता
कि उस की आग से कितने चराग जलते थे
तुम ने स्वेटर बुना था मिरे नाम का
मैं भी लाया था कुछ सर्दियाँ जंगली
ख़ुदा ख़ुदको समझते हो तो समझो
मगर इक रोज़ मर जाना है तुमको
मैं सो रहा हूँ तेरे ख़्वाब देखने के लिए
ये आरज़ू है कि आँखों में रात रह जाए
परों को खोल ज़माना उड़ान देखता है
ज़मीं पे बैठ के क्या आसमान देखता है
हार हो जाती है जब मान लिया जाता है
जीत तब होती है जब ठान लिया जाता है