मैं भी ग्रेजुएट हूँ तुम भी ग्रेजुएट
मैं भी ग्रेजुएट हूँ तुम भी ग्रेजुएट
इल्मी मुबाहिसे हों ज़रा पास आ के लेट

@akbar-allahabadi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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मैं भी ग्रेजुएट हूँ तुम भी ग्रेजुएट
इल्मी मुबाहिसे हों ज़रा पास आ के लेट
अकबर दबे नहीं किसी सुल्ताँ की फ़ौज से
लेकिन शहीद हो गए बीवी की नौज से
रहता है इबादत में हमें मौत का खटका
हम याद-ए-ख़ुदा करते हैं कर ले न ख़ुदा याद
पैदा हुआ वकील तो शैतान ने कहा
लो आज हम भी साहिब-ए-औलाद हो गए
मज़हबी बहस मैंने की ही नहीं
फ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं
हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना
हसीनों को भी कितना सहल है बिजली गिरा देना
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता
दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
बाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ
आई होगी किसी को हिज्र में मौत
मुझ को तो नींद भी नहीं आती
इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद
अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता