आँखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते
आँखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते
अरमान मिरे दिल के निकलने नहीं देते

@akbar-allahabadi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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आँखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते
अरमान मिरे दिल के निकलने नहीं देते
ग़म्ज़ा नहीं होता कि इशारा नहीं होता
आँख उन से जो मिलती है तो क्या क्या नहीं होता
आह जो दिल से निकाली जाएगी
क्या समझते हो कि ख़ाली जाएगी
चर्ख़ से कुछ उमीद थी ही नहीं
आरज़ू मैं ने कोई की ही नहीं
फ़लसफ़ी को बहस के अंदर ख़ुदा मिलता नहीं
डोर को सुलझा रहा है और सिरा मिलता नहीं
हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना
हसीनों को भी कितना सहल है बिजली गिरा देना
दिल मिरा जिस से बहलता कोई ऐसा न मिला
बुत के बंदे मिले अल्लाह का बंदा न मिला
गले लगाएँ करें प्यार तुम को ईद के दिन
इधर तो आओ मिरे गुल-एज़ार ईद के दिन
बहुत रहा है कभी लुत्फ़-ए-यार हम पर भी
गुज़र चुकी है ये फ़स्ल-ए-बहार हम पर भी
इक बोसा दीजिए मिरा ईमान लीजिए
गो बुत हैं आप बहर-ए-ख़ुदा मान लीजिए
हाल-ए-दिल मैं सुना नहीं सकता
लफ़्ज़ मा'ना को पा नहीं सकता
किस-किस अदा से तूने जलवा दिखा के मारा
आज़ाद हो चुके थे, बन्दा बना के मारा
उम्मीद टूटी हुई है मेरी जो दिल मिरा था वो मर चुका है
जो ज़िंदगानी को तल्ख़ कर दे वो वक़्त मुझ पर गुज़र चुका है
कहाँ ले जाऊँ दिल दोनों जहाँ में इसकी मुश्क़िल है
यहाँ परियों का मजमा है, वहाँ हूरों की महफ़िल है
रंग-ए-शराब से मिरी निय्यत बदल गई
वाइज़ की बात रह गई साक़ी की चल गई
अपनी गिरह से कुछ न मुझे आप दीजिए
अख़बार में तो नाम मिरा छाप दीजिए
अपने पहलू से वो ग़ैरों को उठा ही न सके
उन को हम क़िस्सा-ए-ग़म अपना सुना ही न सके
इक बोसा दीजिए मिरा ईमान लीजिए
गो बुत हैं आप बहर-ए-ख़ुदा मान लीजिए
गले लगाएँ करें प्यार तुम को ईद के दिन
इधर तो आओ मिरे गुल-एज़ार ईद के दिन
बहुत रहा है कभी लुत्फ़-ए-यार हम पर भी
गुज़र चुकी है ये फ़स्ल-ए-बहार हम पर भी