ऐसा मत कर वैसा मत कर उस से कहना छोड़ दिया
ऐसा मत कर वैसा मत कर उस से कहना छोड़ दिया
पता नहीं क्या सूझी मैंने ये दुख सहना छोड़ दिया

@afkar-alvi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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ऐसा मत कर वैसा मत कर उस से कहना छोड़ दिया
पता नहीं क्या सूझी मैंने ये दुख सहना छोड़ दिया
फिर एक रोज़ मुक़द्दर से हार मानी गयी
ज़बीन चूम के बोला गया "ख़ुदा हाफ़िज़"
हिज्र में ख़ुद को तसल्ली दी कहा कुछ भी नहीं
दिल मगर हँसने लगा आया बड़ा कुछ भी नहीं
अपने भी तुझ को अपनों में अब गिन नहीं रहे
'अफ़कार' मान जा कि तेरे दिन नहीं रहे
बद्दुआ है के वहाँ आए जहाँ बैठते थे
और ‘अफ़्कार’ वहाँ आपको बैठा न मिले
इस से पहले कि तुझे और सहारा न मिले
मैं तिरे साथ हूँ जब तक मिरे जैसा न मिले
तर्जुबा था सो दुआ की के नुकसान ना हो
इश्क मजदूर को मजदूरी के दौरान ना हो
मैं तुम्हें बद्दुआएं देता हूँ
ताकि तुम मेरा दर्द जान सको