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अपने भी तुझ को अपनों में अब गिन नहीं रहे

अपने भी तुझ को अपनों में अब गिन नहीं रहे

'अफ़कार' मान जा कि तेरे दिन नहीं रहे

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अपने भी तुझ को अपनों में अब गिन नहीं रहे — Afkar Alvi • ShayariPage