ऐ मेरी ज़िंदगी ऐ मेरी हम-नवा तू कहाँ रह गई मैं कहाँ आ गया
ऐ मेरी ज़िंदगी ऐ मेरी हम-नवा तू कहाँ रह गई मैं कहाँ आ गया
कुछ न अपनी ख़बर कुछ न तेरा पता तू कहाँ रह गया मैं कहाँ आ गया

@naseer-turabi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
Followers
0
Content
10
Likes
0
ऐ मेरी ज़िंदगी ऐ मेरी हम-नवा तू कहाँ रह गई मैं कहाँ आ गया
कुछ न अपनी ख़बर कुछ न तेरा पता तू कहाँ रह गया मैं कहाँ आ गया
हर शाम इक मलाल की आदत सी हो गई
मिलने का इंतिज़ार भी मिलना सा हो गया
वो बेवफ़ा है तो क्या मत कहो बुरा उसको
कि जो हुआ सो हुआ ख़ुश रखे ख़ुदा उसको
मिलने की तरह मुझसे वो पल भर नहीं मिलता
दिल उस से मिला जिससे मुक़द्दर नहीं मिलता
ये हवा सारे चराग़ों को उड़ा ले जाएगी
रात ढलने तक यहाँ सब कुछ धुआँ हो जाएगा
अदावतें थीं तग़ाफ़ुल था रंजिशें थीं बहुत
बिछड़ने वाले में सब कुछ था बेवफ़ाई न थी
हम-रही की बात मत कर इम्तिहाँ हो जाएगा
हम सुबुक हो जाएँगे तुझ को गिराँ हो जाएगा