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SHER

हम इक ही लौ में जलाते रहे ग़ज़ल अपनी

हम इक ही लौ में जलाते रहे ग़ज़ल अपनी

नई हवा से बचाते रहे ग़ज़ल अपनी

दरअस्ल उसको फ़क़त चाय ख़त्म करनी थी

हम उसके कप को सुनाते रहे ग़ज़ल अपनी

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