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GHAZAL

सितम ढाते हुए सोचा करोगे

सितम ढाते हुए सोचा करोगे

हमारे साथ तुम ऐसा करोगे?

अँगूठी तो मुझे लौटा रहे हो

अँगूठी के निशाँ का क्या करोगे?

मैं तुमसे अब झगड़ता भी नहीं हूँ

तो क्या इस बात पर झगड़ा करोगे?

मेरा दामन तुम्हीं थामे हुए हो

मेरा दामन तुम्हीं मैला करोगे

बताओ वादा कर के आओगे ना?

के पिछली बार के जैसा करोगे?

वो दुल्हन बन के रुख़्सत हो गई है

कहाँ तक कार का पीछा करोगे?

मुझे बस यूँ ही तुमसे पूछना था

अगर मैं मर गया तो क्या करोगे?

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सितम ढाते हुए सोचा करोगे — Zubair Ali Tabish • ShayariPage