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GHAZAL

फ़ोन तो दूर वहाँ ख़त भी नहीं पहुँचेंगे

फ़ोन तो दूर वहाँ ख़त भी नहीं पहुँचेंगे

अब के ये लोग तुम्हें ऐसी जगह भेजेंगे

ज़िंदगी देख चुके तुझ को बड़े पर्दे पर

आज के बअ'द कोई फ़िल्म नहीं देखेंगे

मसअला ये है मैं दुश्मन के क़रीं पहुँचूँगा

और कबूतर मिरी तलवार पे आ बैठेंगे

हम को इक बार किनारों से निकल जाने दो

फिर तो सैलाब के पानी की तरह फैलेंगे

तू वो दरिया है अगर जल्दी नहीं की तू ने

ख़ुद समुंदर तुझे मिलने के लिए आएँगे

सेग़ा-ए-राज़ में रक्खेंगे नहीं इश्क़ तिरा

हम तिरे नाम से ख़ुशबू की दुकाँ खोलेंगे

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