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GHAZAL

किस तरह ईमान लाऊँ ख़्वाब की ताबीर पर

किस तरह ईमान लाऊँ ख़्वाब की ताबीर पर

छिपकली चढ़ते हुए देखी है उस तस्वीर पर

उसने ऐसी कोठरी में क़ैद रक्खा था हमें

रौशनी आँखों पे पड़ती थी या फिर ज़ंजीर पर

माएँ बेटों से ख़फ़ा हैं और बेटे माओं से

इश्क़ ग़ालिब आ गया है दूध की तासीर पर

मैं उन्हीं आबादियों में जी रहा होता कहीं

तुम अगर हँसते नहीं उस दिन मेरी तक़दीर पर

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