GHAZAL•
इक ज़रा सा टूट कर मिस्मार हो जाता है क्या
By Zia Mazkoor
इक ज़रा सा टूट कर मिस्मार हो जाता है क्या
आईने का आईना बेकार हो जाता है क्या
आज कल मायूस वापस आ रहे हैं क़ाफ़िले
आज कल उस दर से भी इनकार हो जाता है क्या
हाथ पाँव मारने से हो नहीं सकता अगर
डूब जाने से समंदर पार हो जाता है क्या
आलम-ए-तन्हाई में भी उसका ऐसा ख़ौफ़ है
ज़ेहन में होता है क्या इज़हार हो जाता है क्या
हाय उसका इस क़दर मासूमियत से पूछना
लड़कियों को लड़कियों से प्यार हो जाता है क्या