Shayari Page
GHAZAL

अब बस उसके दिल के अंदर दाखिल होना बाकी है

अब बस उसके दिल के अंदर दाखिल होना बाकी है

छह दरवाजे़ छोड़ चुका हूं एक दरवाज़ा बाकी है

दौलत शोहरत बीवी बच्चे अच्छा घर और अच्छे दोस्त

कुछ तो है जो इनके बाद भी हासिल करना बाक़ी है

मैं बरसों से खोल रहा हूं एक औरत की साड़ी को

आधी दुनिया घूम चुका हूं आधी दुनिया बाकी है

कभी-कभी तो दिल करता है चलती रेल से कूद पड़ूॅं

फिर कहता हूॅं पागल अब तो थोड़ा रस्ता बाक़ी है

उसकी खातिर बाजारों में भीड़ भी है और रोनक भी

मैं गुम होने वाला हूं बस हाथ छुड़ाना बाकी है

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