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मोहब्बत के घरों के कच्चे-पन को ये कहाँ समझें

मोहब्बत के घरों के कच्चे-पन को ये कहाँ समझें

इन आँखों को तो बस आता है बरसातें बड़ी करना

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मोहब्बत के घरों के कच्चे-पन को ये कहाँ समझें — Waseem Barelvi • ShayariPage