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अपनी इस आदत पे ही इक रोज़ मारे जाएँगे

अपनी इस आदत पे ही इक रोज़ मारे जाएँगे

कोई दर खोले न खोले हम पुकारे जाएँगे

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अपनी इस आदत पे ही इक रोज़ मारे जाएँगे — Waseem Barelvi • ShayariPage