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NAZM

"बेबसी"

"बेबसी"

वक़्त के तेज़ गाम दरिया में

तू किसी मौज की तरह उभरी

आँखों आँखों में हो गई ओझल

और मैं एक बुलबुले की तरह

इसी दरिया के इक किनारे पर

नरकुलों के मुहीब झावे में

ऐसा उलझा कि ये भी भूल गया

बुलबुले की बिसात ही क्या थी

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"बेबसी" — Waseem Barelvi • ShayariPage