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GHAZAL

खुल के मिलने का सलीक़ा आप को आता नहीं

खुल के मिलने का सलीक़ा आप को आता नहीं

और मेरे पास कोई चोर दरवाज़ा नहीं

वो समझता था उसे पा कर ही मैं रह जाऊंगा

उस को मेरी प्यास की शिद्दत का अंदाज़ा नहीं

जा दिखा दुनिया को मुझ को क्या दिखाता है ग़ुरूर

तू समुंदर है तो है मैं तो मगर प्यासा नहीं

कोई भी दस्तक करे आहट हो या आवाज़ दे

मेरे हाथों में मिरा घर तो है दरवाज़ा नहीं

अपनों को अपना कहा चाहे किसी दर्जे के हों

और जब ऐसा किया मैं ने तो शरमाया नहीं

उस की महफ़िल में उन्हीं की रौशनी जिन के चराग़

मैं भी कुछ होता तो मेरा भी दिया होता नहीं

तुझ से क्या बिछड़ा मिरी सारी हक़ीक़त खुल गई

अब कोई मौसम मिले तो मुझ से शरमाता नहीं

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