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GHAZAL

बीते हुए दिन ख़ुद को जब दोहराते हैं

बीते हुए दिन ख़ुद को जब दोहराते हैं

एक से जाने हम कितने हो जाते हैं

हम भी दिल की बात कहाँ कह पाते हैं

आप भी कुछ कहते कहते रह जाते हैं

ख़ुश्बू अपने रस्ते ख़ुद तय करती है

फूल तो डाली के हो कर रह जाते हैं

रोज़ नया इक क़िस्सा कहने वाले लोग

कहते कहते ख़ुद क़िस्सा हो जाते हैं

कौन बचाएगा फिर तोड़ने वालों से

फूल अगर शाख़ों से धोखा खाते हैं

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बीते हुए दिन ख़ुद को जब दोहराते हैं — Waseem Barelvi • ShayariPage