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GHAZAL

ख़ंजर-ए-शब जो उतर जाएँगे आँखों में मिरी

ख़ंजर-ए-शब जो उतर जाएँगे आँखों में मिरी

मंज़र-ए-रफ़्ता ठहर जाएँगे आँखों में मिरी

ज़ुल्म सहने के लिए रखता हूँ पत्थर का जिगर

अश्क-ए-ग़म यूँही न भर जाएँगे आँखों में मिरी

होगा बाज़ू से नुमायाँ मिरी जुरअत का कमाल

हादसे जब भी ठहर जाएँगे आँखों में मिरी

जब भी आएगा मुझे अहद-ए-गुज़िश्ता का ख़याल

कितने तूफ़ाँ से बिफर जाएँगे आँखों में मिरी

किस तरह ख़ुद में उतारेंगे सहर का नश्शा

ज़ख़्म-ए-शब नींदें जो धर जाएँगे आँखों में मिरी

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