GHAZAL•
शैतान के दिल पर चलता हूं सीनों में सफर करता हूं
By Tehzeeb Hafi
शैतान के दिल पर चलता हूं सीनों में सफर करता हूं
उस आंख का क्या बचता है मै जिस आंख में घर करता हूं
जो मुझ में उतरे हैं उनको मेरी लहरों का अंदाजा है
दरियाओ में उठता बैठता हूं सैलाब बसर करता हूं
मेरी तन्हाई का बोझ तुम्हारी बिनाई ले डूबेगा
मुझे इतना करीब से मत देखो आंखों पर असर करता हूं