मुझसे मत पूछो कि मुझको और क्या क्या याद है

मुझसे मत पूछो कि मुझको और क्या क्या याद है

वो मेरे नज़दीक आया था बस इतना याद है


यूँ तो दश्ते-दिल में कितनों ने क़दम रक्खे मग़र

भूल जाने पर भी एक नक़्श-ए-कफ़-ए-पा याद है


उस बदन की घाटियाँ तक नक़्श हैं दिल पर मेरे

कोहसारों से समंदर तक को दरिया याद है


मुझसे वो काफ़िर मुसलमाँ तो न हो पाया कभी

लेकिन उसको वो तरजुमे के साथ कलमा याद है