क्या ग़लतफ़हमी में रह जाने का सदमा कुछ नही
क्या ग़लतफ़हमी में रह जाने का सदमा कुछ नही
वो मुझे समझा तो सकता था कि ऐसा कुछ नही
इश्क़ से बच कर भी बंदा कुछ नही होता मग़र
ये भी सच है इश्क़ में बंदे का बचता कुछ नही
जाने कैसे राज़ सीने में लिए बैठा है वो
ज़ह्र खा लेता है पर मुँह से उगलता कुछ नही
शुक्र है कि उसने मुझसे कह दिया कि कुछ तो है
मैं उससे कहने ही वाला था कि अच्छा कुछ नही