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GHAZAL

कदम रखता है जब रास्तों पे यार आहिस्ता आहिस्ता

कदम रखता है जब रास्तों पे यार आहिस्ता आहिस्ता

तो छट जाता है सब गर्द-ओ-गुबार आहिस्ता आहिस्ता

भरी आँखों से होकर दिल में जाना सैन थोड़े ही है

चढ़े दरियाओं को करते हैं पार आहिस्ता आहिस्ता

नज़र आता है तो यूँ देखता जाता हूँ मै उसको

की चल पड़ता है कारोबार आहिस्ता आहिस्ता

तेरा पैकर खुदा ने भी फ़ुर्सत में बनाया था

बनाएगा तेरे जेवर सुनार आहिस्ता आहिस्ता

वो कहता है हमारे पास आओ पर सलीके से

के जैसे आगे बढ़ती है कतार आहिस्ता आहिस्ता

इधर कुछ औरतें दरवाजे पर दौड़ी हुई आयी

उधर घोड़ों से उतरे शहसवार आहिस्ता आहिस्ता

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