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GHAZAL

निगाह नीची हुई है मेरी

निगाह नीची हुई है मेरी

ये टूटने की घड़ी है मेरी

पलट पलट कर जो देखता हूँ

कोई सदा अन-सुनी है मेरी

ये काम दोनों तरफ़ हुआ है

उसे भी आदत पड़ी है मेरी

तमाम चेहरों को एक कर के

अजीब सूरत बनी है मेरी

वहीं पे ले जाएगी ये मिट्टी

जहाँ सवारी खड़ी है मेरी

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