Shayari Page
GHAZAL

कौन कहे मा'सूम हमारा बचपन था

कौन कहे मा'सूम हमारा बचपन था

खेल में भी तो आधा आधा आँगन था

काँच की चूड़ी ले कर मैं जब तक लौटा

उस के हाथों में सोने का कंगन था

जो भी मिला सब बाँट लिया था आपस में

एक थे हम और एक ही अपना बर्तन था

अक्स नहीं था रंगों की बौछारें थीं

रूप से उस के सहमा हुआ हर दर्पन था

रो-धो कर सो जाता लेकिन दर्द तिरा

इक इक बूँद निचोड़ने वाला सावन था

तुझ से बिछड़ कर और तिरी याद आएगी

शायद ऐसा सोचना मेरा बचपन था

Comments

Loading comments…
कौन कहे मा'सूम हमारा बचपन था — Shariq Kaifi • ShayariPage