Shayari Page
GHAZAL

कहाँ सोचा था मैं ने बज़्म-आराई से पहले

कहाँ सोचा था मैं ने बज़्म-आराई से पहले

ये मेरी आख़िरी महफ़िल है तन्हाई से पहले

बस इक सैलाब था लफ़्ज़ों का जो रुकता नहीं था

ये हलचल सत्ह पे रहती है गहराई से पहले

बहुत दिन होश-मंदों के कहे का मान रक्खा

मगर अब मशवरा करता हूँ सौदाई से पहले

फ़क़त रंगों के इस झुरमुट को मैं सच मान लूँ क्या

वो सब कुछ झूट था देखा जो बीनाई से पहले

किसी भी झूट को जीना बहुत मुश्किल नहीं है

फ़क़त दिल को हरा करना है सच्चाई से पहले

ये आँखें भीड़ में अब तक उसी को ढूँडती हैं

जो साया था यहाँ पहले तमाशाई से पहले

Comments

Loading comments…
कहाँ सोचा था मैं ने बज़्म-आराई से पहले — Shariq Kaifi • ShayariPage