हैं अब इस फ़िक्र में डूबे हुए हम

हैं अब इस फ़िक्र में डूबे हुए हम

उसे कैसे लगे रोते हुए हम

कोई देखे न देखे सालहा-साल

हिफ़ाज़त से मगर रक्खे हुए हम

न जाने कौन सी दुनिया में गुम हैं

किसी बीमार की सुनते हुए हम

रहे जिस की मसीहाई में अब तक

उसी के चारागर होते हुए हम

गिराँ थी साए की मौजूदगी भी

अब अपने आप से सहमे हुए हम

कहाँ हैं ख़्वाब में देखे जज़ीरे

निकल आए किधर बहते हुए हम

बढ़ीं नज़दीकियाँ इस दर्जा ख़ुद से

कि अब उस का बदल होते हुए हम

रखें क्यूँकर हिसाब एक एक पल का

बला से रोज़ कम होते हुए हम

बहुत हिम्मत का है ये काम 'शारिक़'

कि शरमाते नहीं डरते हुए हम